हसीं का अंदाज़े बयाँ तो ठीक हैं पर;
तेरे यूँ नज़रें ज़ुकाने में भी इश्क हैं,
रोज़मर्रा का सुलूक तो ठीक हैं पर;
तेरे यूँ मुँह बनाने में भी इश्क हैं,
बतियाने का सलीका तो ठीक हैं पर;
तेरी इन ख़ामोशियों में भी इश्क हैं,
नजरों का यूँ मिलना तो ठीक हैं पर;
तेरी इन नज़रअंदाजी में भी इश्क हैं,
तेरे दर्द को यूँ दूर बैठे महेसुस कर;
हर-रोज़ तुजे याद करने में भी इश्क हैं.